Sunday, 15 May 2022

बेटी चीनी, बहू नमक, अब ये नहीं चलता:सुख-दुख की साथी बन रही सास, रिश्तों में आ रहा पॉजिटिव चेंज

 बेटी चीनी, बहू नमक, अब ये नहीं चलता:सुख-दुख की साथी बन रही सास, रिश्तों में आ रहा पॉजिटिव चेंज

वर्किंग बहुओं की दुःख सुख की साथी उनकी सास होती हैं

इसका एहसास बहुओं को कोरोना महामारी में हुआ

बेटी चीनी है जिसके बिना जिंदगी में कोई मिठास नहीं, बहू नमक है जिसके बिना जीवन में कोई स्वाद नहीं। ये कहावत अब बदलने लगी है। ये सुनकर आप हैरान हो सकते हैं कि बहुओं की नजर में सास की और सास की नजर में बहुओं की इज्जत बढ़ने लगी है।

लखनऊ में रहने वाली स्वाति श्रीवास्तव बैंक में काम करती हैं। स्वाति कहती हैं मैं एक बच्चे की मां हूं। बच्चा पूरे दिन अपनी दादी के पास ही रहता है। ऑफिस और घर मैनेज करना मेरे लिए मुश्किल था लेकिन मेरी सासु मां ने जिम्मेदारियों को संभालने में मेरी बहुत मदद की है।



स्वाति श्रीवास्तव और उनकी सासु मां

स्वाति श्रीवास्तव और उनकी सासु मां

पुणे की पुष्पा सिन्हा कहती हैं मेरी बहू पेशे से सॉफ्टवेयर इंजीनियर है और वो अपने काम के साथ मेरा और अपने ससुर का बहुत ध्यान रखती है। खासकर मुझे समय पर दवाइयां देती है। अपने काम के बीच में भी वो हमारे खाने पीने के बारे में बार-बार पूछती रहती है।

पुष्पा सिन्हा और उनकी बहू

पुष्पा सिन्हा और उनकी बहू

नागपुर की लवी वासवानी बिज़नेस वुमन हैं। लवी कहती हैं आज मैंने जो भी हासिल किया है उसके पीछे मेरी सासु मां का हाथ है। उन्होंने मुझे जिंदगी के हर मोड़ पर सपोर्ट किया है। मेरे बच्चों की परवरिश के साथ-साथ वो मेरा भी बहुत ख्याल रखती हैं।

लवी वासवानी और उनकी सास।

लवी वासवानी और उनकी सास।

सास बहू की इस स्पेशल बॉन्डिंग और रिलेशन के बारे में रिलेशनशिप काउंसेलर दामिनी ग्रोवर कहती हैं महामारी के दौरान कई घरों में सास बहू में रिश्ते सुधरने का कारण यही है कि दोनों ने जब एक साथ ज्यादा समय बिताया तो दोनों ने एक दूसरे का योगदान देखा। उन्हें एक दूसरे की अहमियत का पता चला। जहां बहू को लगा कि मेरे बच्चों का उनकी दादी कितना ख्याल रख रही हैं। वहीं सास को भी परिवार को बहू की तरफ से दी जा रही आर्थिक मजबूती और साथ- साथ घरेलू जिम्मेदारी का एहसास हुआ।

वर्किंग बहुओं की दुःख-सुख की साथी सास

वर्किंग बहुओं की दुःख-सुख की साथी उनकी सास ही होती हैं। इसका एहसास बहुओं को कोरोना महामारी के दौरान उनके साथ रहकर वर्क फ्रॉम होम करने के बाद हुआ।

रिश्तों में बढ़ी मिठास

बहुओं के बदले रवैये से सास भी पॉजिटिव हो गई हैं। उन्हें एहसास होने लगा है की उनकी बहू ऑफिस की जिम्मेदारियों के बाद घर का काम भी बखूबी निभा रही है। दोनों के रिश्तों में पॉजिटिव चेंज देखने को मिला है। अपनी वर्किंग बहुओं के बच्चों को उनकी मां की तरह संभालती दादी मां अपनी बहू पर भी मां जैसा प्यार लुटा रहीं हैं।

ये बदलाव लॉकडाउन के दौरान एक साथ रहने के बाद आया है। बहू कभी बेटी नहीं बन सकती और सास कभी मां। इस कहावत को गलत साबित करती इन सास बहुओं के प्यारे रिश्तों की जोड़ी लोगों की सोच और रवैया बदलने में कारगर साबित हो सकती है। ऐसे में जरूरी है कि हर सास अपनी बहू को बेटी के समान रखे ताकि बहू भी सास को मां का दर्जा दे सके। सास बहू के रिश्तों में मिठास आना समाज के लिए सकारात्मक बदलाव है।

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